Sunday, May 9, 2010

यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता !




यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता ! यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता !
यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता ! यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता
आर्यवर्त! नमन !
देवपुत्रों के देश
नमन !

सर्वत्र देव वास !
देवों के महिमा-मंडित मुख -
अजस्र सुख !
देव प्रकाश से चकाचौंध नेत्र
प्रकाशित जन-जन , समाज !
अमर नारी -देश के
अमर देव
तू प्रबुद्ध
सबल
विशेष
रत नारी पूजा में आज !

तू कर रमण देव !
अपनी ही रोशनी से अंध
त्री-नेत्र बंद !
तूने कब देखा -
कब सुना
कब जाना
नारी का मन !
ओ तपस्वी !
तेरा डमरू
घनघन-घनघन नाद!
किसने सुना
अरण्य में
ग्राम में
नगर
कस्बे में वह रुदन , आर्तनाद ?
बस तेरा डमरू बजता रहा
चीर कर करुण - विलाप !

दयाना, अमला , गूरी, चंदो
और न जाने कितने नाम
डायन बनकर भटक रहे हैं सदियों से
कटे केश , क्षत वक्ष ,
निर्वसन
हर तंत्री से
आती चीत्कार
हाहाकार !
पर तू निर्विकार
देख रहा देवों के अपकार !

सारे पत्थर उसे लगे !
उसे घसीटा
ताड़ित- प्रताड़ित किया
निष्कासित किया
अपमानित किया
पर एक भी पत्थर तेरे डमरू पर न लगा ?
नहीं तो ऐसा भी नहीं
कि तेरा ओंकार चैतन्य न होता
इस नाद पर नर्तन न किया होता !

आँख खुलती तो
जला देता तू
ये अरण्य
ग्राम
क़स्बा
नगर
और
देता
जो देय है
देय नारी को !
उसका सम्मान
उसका मान
नया विहान !
फिर डमरू बजता
साज सजता
अग्नि समिधा में घृत गिरता
ओंकार से नभ का होता क्षरण
धरती पर देव-रमण !
और हम सब सुनते
सब कहते
यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता
यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता
यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता
यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता !

अपर्णा

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