
रामलीला !
इस साल फिर!
वही राम!
ढेर पात्र!
उनमें अधरेखा -सी
सदियों खिंची !
मूक !
आवाक!
हठात!
अहिल्या! अहिल्या! अहिल्या!
प्रतीक्षारत!
व्यक्ति की!
समाज की!
पति की!
राम की!
अहिल्या! अहिल्या ! अहिल्या!
इन्द्र, एक छल!
एक रूप!
एक देव!
एक पुरुष!
शौर्य!
चौर्य!
रमण!
हनन!
विद्रूप कुटी के आँगन में -
विस्तरित चीत्कार , हाहाकार ...!
अहिल्या! अहिल्या! अहिल्या!
वह गया !
वह रही!
पति, समाज , संसार के समक्ष -
लज्जा , अपमान से भीत !
क्रीत!
फैले नेत्र!
उलझे बाल!
कहीं से टिटहरी चीख उठी -
आह ! परित्यक्त !
अहिल्या! अहिल्या! अहिल्या!
टिटहरी की चीख -
लता ! कुञ्ज! वन ! उपवन!
हवा! गंध! धरा! आकाश!
घर! द्वार!
रिस-रिस , रिस- रिस
पसर गयी चहुँ ओर!
उतर गया रिसाव !
गहरे!
व्रणों की रेत भरी कोख में !
पत्थर बनकर
खड़ी !
चुप-चुप ,चुप-चुप
कब से
अहिल्या!अहिल्या! अहिल्या!
और रामलीला चलती रही !
अपर्णा
No comments:
Post a Comment