
द्रुम डालों के बीच
पर्ण की मृदु छाया में ,
कौन तृणों को चुन-चुन कर है नीड़ बनाता !
लीरी, पंख,
चूड़ी ,धागों से उसे सजाता !
द्रुम डालों के बीच
पर्ण की मृदु छाया में ,
कौन नीड़ में बैठ
प्रेम के शंख बजाता !
संमर्मर -से अण्डों के शिवलिंग सजाता !
द्रुम डालों के बीच
पर्ण की मृदु छाया में ,
कौन फैलाये पंख , राख -सा तपता रहता !
इसी राख में जीवन का सोना है ढलता !
द्रुम-डालों के बीच
पर्ण की मृदु छाया में ,
कौन साँझ को
दानों के मोती चुग लाता !
और चोंच से चोंच मिलकर उन्हें खिलाता !
द्रुम डालों के बीच
पर्ण की मृदु छाया में ,
कौन पंख को
पालों -सा मजबूत बनाता !
और पवन में नौका -सा तिरना सिखलाता !
द्रुम डालों के बीच
पर्ण की मृदु छाया में ,
कौन देखता मूक , शून्य बूढ़ी आँखों से !
मन -छौना लौटेगा!! पूछे बूढ़े पाँखों से !
(बूढ़े माँ -पिता के लिए - एक व्याकुल मन )
अपर्णा
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