Sunday, May 9, 2010

कस्तूर




To a Skylark P.B. Shelley की अमर रचना है. कविता के पक्षी से मैं माफ़ी माँग रही हूँ , क्योंकि मैंने उसका नाम बदल दिया है. भारत का गायक पक्षी कस्तूर मुझे अधिक जाना पहचाना लगा . कस्तूर का परिचय मैं पी.बी. शैली से करवाना चाहूँगी. वैसे हो सकता है हम हिन्दुस्तानी भी इस नाम से परिचित न हों.

मूल कविता का वीडियो भी देखें .

कहीं स्वर्ग से , चोंच में अपनी
मुक्तक गीतों के लाया .
घटाएँ साथ बिठा पंखों पर
कस्तूर धरा पर तिर आया.
फिर इस डाली पर आ बैठा ,
फिर उस डाली पर जा बैठा.
आह्लाद घोलता मधुवन में ,
कण -कण के मन में जा पैठा.
मैं सोच रही सुख के पंछी
तेरा क्या मुझ से नाता है !
मेरा दुःख तेरा कंठ बना ,
तेरा सुख मुझको भाता है.
अपने पंखों में दर्द लिए ,
उड़ चला दूर तू अम्बर में .
फिर बादल की तू आग बना
और बरस गया तू घर-घर में.
जब सोने की बिजली चमकी
और डूब गया सूरज उसमें ,
तब किसी नाव-सा तैर गया ,
बादल की उठती लहरों में.
मैं देख न पाई थी तुझको ,
आँखों पर रात अँधेरी थी.
पर मन की घाटी गूँज उठी,
जो तान निशा पर छेड़ी थी.
रजनी भी तुझसे हार गयी,
बादल छंटे कुहाँसों के .
चंदा के ओठों पर बरसे
हास सरल आशाओं के.
तेरे अन्दर का कवि ह्रदय
रोक नहीं खुद को पाता.
अश्रु के मोती चुग सारे,
तीव्र कंठ से तू गाता.
कैसी आशाएँ , कैसे डर?
जीवन का चलता एक सफ़र .
हर कदम नापते बढ़ जाते ,
रह जाती पीछे एक डगर.
हम आज पलट पीछे देखें ,
या अनदेखे ही बढ़ जाएँ.
पर सुंदरतम मुसकान वही,
पर-पीड़ा में जो गल पाए.
तेरे गीतों से सुंदर मग,
झिलमिल तारे , सारा अग-जग.
तू आधे भी सिखला देगा,
अपने कंठों के कोमल स्वर.
तो मैं भी कुछ गा पाऊँगी
औरों की पीड़ा को हर.
जो आज सुना-सीखा मैंने,
मेरे ओठों पर आएगा .
जो आज सुन रही मैं तुझको ,
फिर जगत उसे सुन पायेगा.
अपर्णा

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