Sunday, May 2, 2010

एक बार अपनाकर देखो

जीवन में कैसी देरी है ,
जीवन में कैसी जल्दी है ,
जीवन में क्या खो जाना है ,
जीवन में क्या मिल जाना है ,
मेरी आँखों से तुम देखो
जग जाना और पहचाना है.
नहीं अकेले इस सागर में
लहर-लहर का मिल जाना है.
मेरे शब्द उठा कर देखो
शब्द गीत हर हो जाना है.
सागर अपने मन -दर्पण में
चाँद समेटे रख सकता है ,
और हवाओं का ये आँचल
सुमन झोली में भर सकता है ,
फिर तुम क्यों नाराज़ खुदी से
एक सरल मुसकान बिखेरो ,
जगती के सुंदर जीवन से
सुंदर नयनों को न फेरो.
ये संसार देव नगर है ,
जिसमें मिलती कई डगर हैं .
रुके -खड़े क्यों !
क्या उलझन है !
अपने कदम बढ़ा कर देखो,
साथ चलेंगे कितने पग फिर
एक बार अपनाकर देखो!

कविता The World is too much with us का सीधा अनुवाद नहीं है . हाँ , मेरा कवि के ह्रदय में झांकने का दुस्साहस ज़रूर है.

5 comments:

  1. अपर्णाजी,
    प्रस्तुत कविता को गीत कहें तो ज़्यादा अच्छा है ।
    पढ़ते ही मैं गुनगुनाने लगा ।
    उम्मीद है इसे किसी मधुर कंठ की वाणी में सुन सकेंगे ।
    सादर ।

    ReplyDelete
  2. (फिर तुम क्यों नाराज़ खुदी से
    एक सरल मुसकान बिखेरो,)
    (रुके -खड़े क्यों !
    क्या उलझन है!)
    एक बार अपनाकर देखो!
    *दी आभार इस सुन्दर रचना के लिए!

    ReplyDelete
  3. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  4. कल्पना और वास्तविकता का निराला सामजस्य है अपर्णा जी आपकी इस अनुपम कृति में

    ReplyDelete