
जीवन में कैसी देरी है ,
जीवन में कैसी जल्दी है ,
जीवन में क्या खो जाना है ,
जीवन में क्या मिल जाना है ,
मेरी आँखों से तुम देखो
जग जाना और पहचाना है.
नहीं अकेले इस सागर में
लहर-लहर का मिल जाना है.
मेरे शब्द उठा कर देखो
शब्द गीत हर हो जाना है.
सागर अपने मन -दर्पण में
चाँद समेटे रख सकता है ,
और हवाओं का ये आँचल
सुमन झोली में भर सकता है ,
फिर तुम क्यों नाराज़ खुदी से
एक सरल मुसकान बिखेरो ,
जगती के सुंदर जीवन से
सुंदर नयनों को न फेरो.
ये संसार देव नगर है ,
जिसमें मिलती कई डगर हैं .
रुके -खड़े क्यों !
क्या उलझन है !
अपने कदम बढ़ा कर देखो,
साथ चलेंगे कितने पग फिर
एक बार अपनाकर देखो!
कविता The World is too much with us का सीधा अनुवाद नहीं है . हाँ , मेरा कवि के ह्रदय में झांकने का दुस्साहस ज़रूर है.
अपर्णाजी,
ReplyDeleteप्रस्तुत कविता को गीत कहें तो ज़्यादा अच्छा है ।
पढ़ते ही मैं गुनगुनाने लगा ।
उम्मीद है इसे किसी मधुर कंठ की वाणी में सुन सकेंगे ।
सादर ।
Thanx! vinay ji.
ReplyDelete(फिर तुम क्यों नाराज़ खुदी से
ReplyDeleteएक सरल मुसकान बिखेरो,)
(रुके -खड़े क्यों !
क्या उलझन है!)
एक बार अपनाकर देखो!
*दी आभार इस सुन्दर रचना के लिए!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकल्पना और वास्तविकता का निराला सामजस्य है अपर्णा जी आपकी इस अनुपम कृति में
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